अफवाहों का वीभत्स रूप या पूर्व नियोजित हिंसा का तांडव

पिछले एक हफ्ते से देश ने हिंसा के जिस तांडव  को देखा है वह न केवल अति निंदनीय है बल्कि भारत के आधुनिक समाज के लिए एक काले धब्बे के समान है.



देशहित में भारतीय संसद ने अपने शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन बिल को पास क्या किया कि देश में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया और फौरी तौर पर देश के विभिन्न भागों में हिंसा का तांडव शुरू हो गया. इस हिंसा में न केवल सरकारी और निजी सम्पतियों का नुकसान हुआ बल्कि कई जानें भी गईं हैं. एक विशेष समुदाय की बहुलता वाले इस विरोध प्रदर्शन और हिंसा पर आमतौर पर दो मत निकल कर सामने आ रहे हैं. पहले मत में यह कहा जा रहा है कि यह सब उस विशेष समुदाय यानि मुस्लिमों में भारी नाराजगी की परिणति है तो दूसरा मत है कि यह सब पूर्व नियोजित था और जिसे देश के विपक्षी पार्टियों ने और भी अधिक भ्रम फैलाकर बढ़ा दिया.