भ्रामक दावे और असफल विदेश नीति का इतिहास रच रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं कि अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं. कभी मेक्सिको के साथ शरणार्थियों को लेकर उलझतें हैं तो कभी उत्तर कोरिया और चीन पर बरसते हैं. कभी पाकिस्तान पर धौंस दिखाते हैं तो कभी उसे पुचकारने लगते हैं. बहरहाल, चुनाव से पूर्व उन्होंने अमेरिकी जनता से जितने वादे किए थे वे सभी वादे अभी तक वादे ही बने हुए हैं. हाँ, आए दिन भ्रामक दावे का बम वो जरूर फोड़ते रहते हैं.



दो दिनों पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात में यह कहते हुए कूटनीति की दुनिया में हड़कंप मचा दिया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मामले में मध्यस्थता का आग्रह किया था. हालाँकि ट्रम्प का यह दावा सरासर झूठा और भ्रामक था. ट्रम्प के इस दावे को न केवल भारत द्वारा कड़े शब्दों में नाकारा गया बल्कि अमेरिका ने भी अधिकारिक तौर पर इस दावे का कहीं उल्लेख नहीं किया. इससे बढ़कर अमेरिका में ही ट्रम्प के इस भ्रामक दावे पर उनकी कड़ी आलोचना हो रही है.


जहाँ तक कश्मीर समस्या का सम्बन्ध है तो भारत का इसपर हमेशा से रुख स्पष्ट रहा है. चाहे देश में किसी भी पार्टी की सरकार रहे, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह सबके लिए पत्थर की लकीर है. बात रही कश्मीर में आतंकवाद की तो इसपर भी भारत का रुख स्पष्ट है कि यह सब पड़ोसी देश पाकिस्तान की नापाक साजिश है. अब जब पाकिस्तान दुनिया को भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने की दुहाई देता है तो भारत का स्पष्ट कहना है कि पाकिस्तान पहले कश्मीर में उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाए तभी दोनों देशों के बीच बातचीत की शुरुआत हो सकती है. दूसरी बात यह कि भारत हमेशा से कश्मीर मामले में किसी तीसरे देश की दखलंदाजी को अस्वीकार करता आया है. देश की वर्तमान मोदी सरकार का रुख भी कश्मीर पर पूर्ववर्ती सरकारों की ही तरह है. अगर सही मायने में देखा जाय तो कश्मीर पर नरेंद्र मोदी की नीति और कहीं अधिक सख्त होती जा रही है. ऐसे में नरेंद्र मोदी और कश्मीर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दावा खालिस झूठ और सगूफे के अलावा और कुछ नहीं है. यह केवल हम या कुछ लोग नहीं कह रहे हैं बल्कि पाकिस्तानपरस्तों को छोड़कर पूरी दुनिया कह रही है.


अब जहाँ तक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की बात है तो उनके किसी भी दावों को दुनिया क्या उनके देश के लोगों और राजनीतिज्ञों ने भी गंभीरता से लेना छोड़ दिया है. इसकी वजह वह खुद हैं. जबसे वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तबसे लेकर आजतक के उनके अनाड़ीपन को दुनिया ने देखा और सुना है. अफगानिस्तान से सेना हटाने, पाकिस्तान को मुफ्त में अरबों डॉलर देने, मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने, उत्तर कोरिया को नेस्तनाबूद करने, ईरान को सबक सिखाने, नाटो के देशों द्वारा समुचित फंड न देने, जापान से समुचित सहयोग न मिलने आदि ऐसे हजारों दावे हैं जिसपर उन्होंने न केवल अमेरिकी जनता के बीच भ्रम की स्थिति बनाए रखा बल्कि दुनियाभर में एक भ्रामक माहौल को भी बनाए रखा.


अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट में 10 जून 2019 को प्रकाशित एक खबर की मानें तो 7 जून 2019 को, जिस दिन उन्होंने अपने कार्यकाल का 869वाँ दिन पूरा किया था, उस दिन तक वे 10,796 झूठे व भ्रामक दावे कर चुके थे. इसके हिसाब से जबसे वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तबसे लेकर आजतक वह औसतन प्रतिदिन 12 झूठे और भ्रामक दावे करते रहे हैं. उनके झूठे और भ्रामक दावों में से सर्वाधिक मेक्सिको, उसकी सीमा पर कंक्रीट की दीवार बनाने और वहां से आनेवाले शरणार्थियों से जुड़ा रहा है. या यूँ कहा जाय कि ट्रम्प ने मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने की रट को अपना तकिया कलाम बना लिया है तो यह गलत नहीं होगा. यह उनका बार-बार किया जानेवाला दावा है जिसके बारे में वाशिंगटन टाइम्स का कहना है कि इस दावे को वे अबतक 172 बार दोहरा चुके हैं.


अपने इसी रिपोर्ट में वाशिंगटन टाइम्स ने डोनाल्ड ट्रम्प के झूठे और भ्रामक कई दावों का संक्षेप में उल्लेख भी किया है और साथ ही उन दावों की सच्चाई का विश्लेषण भी प्रकाशित किया है.


अमेरिका के घरेलू मुद्दों को छोड़कर अगर ट्रम्प कालीन विदेशी मुद्दों की बात की जाए तो स्पष्ट होता है कि ट्रम्प इसमें न केवल अनाड़ी हैं बल्कि उनमें कूटनीति की समझ न के बराबर है. संभवतः अमेरिका का यह समय इतिहास में सबसे असफल विदेश नीति के रूप में याद किया जाएगा. अपने मित्र देशों पर कटाक्ष करना तो कोई उनसे सीखे. कुछ दिनों पूर्व जापान पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा था कि अगर कोई अमेरिका पर हमला कर दे तो जापान सहयोग करने के बदले अपने यहाँ उत्पादित सोनी टीवी पर उसका लाइव टेलीकास्ट देखेंगे. इतना ही नहीं, ट्रम्प के अविश्वसनीय दावों की उड़ान तो देखिए, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सामने डींगें हांकते हुए वह कहते हैं कि वह अगर चाहें तो अफगानिस्तान को 10 दिनों में नेस्तनाबूद कर सकते हैं. ऐसे में उन्हें कौन समझाए कि कुछ भी बोलने से पहले ट्रम्प को वियतनाम और इराक़ में अमेरिकी सेना की असफलता का इतिहास जरूर ज्ञात कर लेना चाहिए था. वैसे अफगानिस्तान में भी अमेरिकी और नाटो सैन्य बल आज तक तालिबान को समूल नाश करने में पूरी तरह विफल रहे हैं. फिर वो किस मुंह से अफगानिस्तान को नेस्तनाबूद करने का दावा कर रहे हैं.


बहरहाल इतना तो स्पष्ट है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प न केवल दुनिया के लिए बल्कि स्वयं अमेरिका के लिए भी एक अबूझ पहेली बनते जा रहे हैं.