इतिहास के पन्नों में भी वामपंथी षड्यंत्र!

क्या स्कूल से लेकर उच्च अकादमिक स्तर तक के हमारे इतिहास के किताब इतिहासकारों के पूर्वाग्रह का काला चिट्ठा है? क्या हमारे विद्वान इतिहासकार हिन्दू विरोधी मानसिकता से ग्रसित हैं? यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि एक पुरातत्वशास्त्री डॉ. के. के. मोहम्मद कह रहे हैं जिन्होंने अयोध्या में राममंदिर की सच्चाई का अपनी एक किताब में वर्णन किया है.



यहाँ हम चर्चा कर रहे हैं पूर्व पुरातत्वशास्त्री डा. के. के. मोहम्मद की आत्मकथा ‘न्यान एन्ना भारतीयन’ (मैं भारतीय हूं) की. यह किताब कम्युनिस्ट इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों के बौद्धिक नकाब को हटाकर इस कटु सत्य को पुनः रेखांकित करती है कि किस तरह सेकुलरवाद के नाम पर वामपंथियों ने समाज को न केवल खाइयों में बांटने का काम किया, बल्कि अपने कुत्सित चिंतन से उसे और चौड़ा किया है। 


मूलतः मलयालम भाषा में लिखी उपरोक्त आत्मकथा में पुरातत्वशास्त्री ने विवादित ढांचे के नीचे मंदिर होने का खुलासा किया है। अयोध्या में पुरातत्त्व विभाग द्वारा कराई गई खुदाई के साक्षी रहे डा. मोहम्मद के अनुसार अयोध्या मुद्दे के शांतिपूर्ण  समाधान के सबसे बड़े बाधक इरफान हबीब, रोमिला थापर, डीएन झा, आरएस शर्मा जैसे कम्युनिस्ट इतिहासकार हैं। इन इतिहासकारों ने मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी नेताओं के जुनून को हवा देकर अयोध्या मसले के सर्वस्वीकार्य समझौते का रास्ता बनने नहीं दिया।


डा. मोहम्मद के अनुसार 1989 से 1991 के बीच राम जन्मभूमि हिंदुओं को देने के विकल्प पर सहमति बन रही थी। किंतु खुदाई में मिले साक्ष्यों को नकार कर कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने मुस्लिम समुदाय में यह सन्देश देने का काम किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर का कोई अस्तित्व ही नहीं है।


डा. मोहम्मद ने यह खुलासा किया है कि मुगल शहंशाह के कमांडर मीर बाकी ने अयोध्या के मंदिर को ध्वस्त कर उसके ही ध्वंसावशेषों से विवादास्पद मस्जिद का निर्माण कराया था। डा. मोहम्मद के अनुसार पुरातत्त्व विभाग को खुदाई में मिले केवल 14 स्तंभ ही नहीं, अन्य कई पुरातात्त्विक साक्ष्य भी यह गवाही दे रहे हैं कि अयोध्या में मंदिर के ऊपर मस्जिद बनाई गई।


पुरातत्व विभाग ने 1976-77 में प्रो. बी. बी. लाल के नेतृत्व में विवादित ढांचे का निरीक्षण किया था। बाद में 2002-2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर विवादित ढ़ांचे के आसपास उत्खनन कराया गया। तब 50 के करीब ऐसे चबूतरे मिले, जो विवादित ढांचे के अंदर थे। उस उत्खनन में कई मुस्लिम अधिकारी और कर्मचारी भी खास तौर पर शामिल किए गए थे। उत्खनन में मंदिरों के ऊपर बने कलश के नीचे लगाया जाने वाला अमलका (गोल पत्थर) मिला, जो केवल मंदिरों में ही लगाया जाता है। इसके साथ जलाभिषेक के बाद जल का प्रवाह करने वाली मगर प्रणाली (मगरमच्छ के आकार वाली) भी मिली। मगर प्रणाली भी केवल मंदिरों में ही बनाई जाती है।


पुरातत्त्व विभाग की टीम ने विवादित ढ़ांचा तोड़े जाने के बाद मिले एक शिलालेख का भी अध्ययन किया था। इस शिलालेख में राम को बाली और रावण का वध करने वाले भगवान विष्णु के अवतार के रूप में संबोधित किया गया था। किंतु इन सभी साक्ष्यों को नकार कर कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने मुस्लिम समुदाय को भ्रमित करने का काम किया, जिसके कारण वे अपनी जिद पर अड़े रहे। डा. मोहम्मद के अनुसार, यह एक बड़ी ऐतिहासिक गलती थी। यदि तब हिंदू-मुसलमान के बीच सर्वमान्य और शांतिपूर्ण समाधान निकल आता तो आज देश जिन सांप्रदायिक समस्याओं से जूझ रहा है, उनसे कुछ हद तक मुक्ति मिल सकती थी।


वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारत के वास्तविक इतिहास के साथ की गई छेड़छाड़ गहन चिंता का विषय है। कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के सतत संरक्षण में वामपंथी इतिहासकारों ने ऐतिहासिक साक्ष्यों व घटनाओं में भ्रामक जानकारियां डालने का काम किया। इसी विकृति के कारण नई पीढ़ी बंगाल के क्रूर शासक सिराजुद्दौला से अपरिचित है। कम्युनिस्ट इतिहासकार उसे अंग्रेजों से लड़ने वाले महान सेनानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं। कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को हर दृष्टि से विकृत करने का प्रयास किया है। औरंगजेब ने हिंदुओं और सिख गुरुओं पर जैसी बर्बरता ढाई, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। किंतु वामपंथी इतिहासकार औरंगजेब के कुछेक मंदिरों को दान देने का यशगान कर उसके जिहादी चरित्र पर पर्दा डाले रखते हैं। मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां के बहुसंख्यकों को मौत या इस्लाम में से एक को स्वीकारने का विकल्प दिया, इसे वामपंथी इतिहासकार भूले से भी उदघाटित नहीं करते। मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग का कम्युनिस्ट खेमा उस मानसिकता के साथ लगातार नरमी बरतता रहा, जिसने विजितों को नीचा दिखाने के लिए उनके मंदिरों का विध्वंस किया, उनकी आस्था से जुड़े स्थलों को रौंद कर वहां मस्जिदों का निर्माण कराया।


अयोध्या में खुदाई में मिले अन्य साक्ष्यों के विस्तार में जाने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण डा. मोहम्मद का सच के साथ खड़ा होना है, जिसका नितांत अभाव अवसरवादी कम्युनिस्ट और सेकुलरिस्टों में है। अब तक ऐसे खुलासों और दावों को कम्युनिस्ट संघ परिवार और हिंदू संगठनों का सांप्रदायिक एजेंडा बताते आए हैं, किंतु अब एक निष्ठावान मुसलमान पुरातत्वशास्त्री ने प्रमाण सहित अयोध्या में राम मंदिर होने का दावा किया है, इसे कम्युनिस्ट कैसे झुठला सकते हैं?